शुक्रवार, 9 अगस्त 2019

पंछी हत्या

मैदान में खड़ा गगन को निहारता
उड़ते हुए पतंग को निहारता
निहारते ही निहारते ये क्या हुआ
पंछियां का समूह आंखों के सामने आ गया
मैं पंछियों के बीच घिर गया, डर गया
चार कदम पीछे हो गया
एकाएक पंछियों का स्वर गूंजा
बोली आज बच्चे से मिलाप हो गया
मेरी रूह को भगवान मिल गया
डरो नही प्यारे बालक
तुम तो ईश्वर के रूप हो
हम तुम्हे कुछ नही करेंगे
थोड़े से सवाल करेंगे
तुम क्या उत्तर दोगे ?
क्या तुम आजाद हो या किसी पिंजर में बंद हो?
कहीं तलवार बाज़ी हो
क्या तुम उस बीच आओगे ?
यदि तुम उस बीच आ भी जाओ
क्या तुम तलवार की धार से बच पाओगे?
उत्तर दो प्रिये बालक उत्तर दो....
सवाल बहुत गंभीर थे
मेरी चेतना से परे थे
समझ नही आ रहा था
इन पंछियों ने मुझे क्यों घेरा था
मैंने पूछा पंछियों से
क्या अपराध है मेरा
जिसके लिए तुम सबने है मुझे घेरा
पंछियों का स्वर पुनः गुंजा
ओ अबोध बालक तुझे हम बोध कराते
तेरी अचेत चेतना को हम आज जगाते
पिछले बरस भी तू इसी तरह छत पर आया
तूने हर्षोल्लास से स्वतंत्रता दिवस मनाया
बड़े चाव से एक पतंग खरीद कर उड़ाया
सब मौन हो गए जैसे कही खो गए
मेरी अचेत चेतना को सब स्मरण हो गया
ओ पंछियों मुझे सब याद आ गया
मैंने अनजाने में पंछी हत्या किया
हमारा देश भारत इसी दिन सन 1947 में हुआ स्वतन्त्र
इसी खुशी में हम सब उड़ाते है रंग बिरंगे पतंग
नया दौर आया
पतंगो का रंग रूप बदला
स्वदेशी ऊन से पतंग उड़ाने का प्रचलन भी बदला
डोर आया, मांझा आया और अब विदेशी प्लास्टिक मांझा
पिछले बरस , मैं यही मांझा लाया
बड़े चाव से पतंग उड़ाया
पतंगबाज़ी में हिस्सा लिया
यकायक पतंगबाज़ी के बीच चिड़िया आ गयी
बाज़ी तो जीत गया लेकिन चिड़िया की गर्दन कट गयी
मैदान पर आते - आते चिड़िया की जान निकल गयी
आज आंसुओ से मेरी आंखे धुल गयी
मुझे स्वतंत्रता की परिभाषा मिल गयी
है पंछियों , मैं उत्तर दुंगा - उत्तर दुंगा...
हा मैं आजाद हूँ और तुम भी आजाद उड़ सको
ऐसा आसमान दुंगा
आज से अभी से सबको बतलाऊंगा
तुम्हारी आजादी के लिये गुहार लगाऊंगा
बंदीगृह तुम्हारे लिये बनते पिंजर को तुड़वाऊंगा
स्वदेशी ऊन से रंग बिरंगे पतंगे उड़ाऊंगा
एक पतंग आई
मेरे माथे से टकराई
पंछियों का समूह ओझल हो गया
पंछियों के लिए एक आस छोड़ गया।