गुरुवार, 7 दिसंबर 2017

जीवन बहती धारा

जीवन और समय साथ - साथ चलते है परन्तु अंतर सिर्फ इतना है की जीवन रुक जाता है और समय हर पल चलता रहता है। समय की सुई एक ही चाल में चलती रहती है लेकिन जीवन का पात्र एक चाल में नहीं चलता कभी उसकी चाल मन्द होती है तो कभी अत्यधिक तेज।
जीवन हर पल उन्मुक्त अपनी मौज में रहती है किन्तु उसका पात्र भावों में बेह के कभी हस्ता है तो कभी रोता है लेकिन जब भावों का वेग तेज होता है तो जीवन रुक जाता है और उसका पात्र भी रुक जाता है उसके पश्चात नाही पात्र रहता और नाही उसके भाव सब कुछ छिण हो जाता है इसके बाद जीवन और उसका पात्र इस संसार में कही लुप्त हो जाते है।